Karm (कर्म) आख़िर क्या है?

गीता में कहा गया है कि 'ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं!' अर्थात् 'ज्ञानरूपी अग्नि में ही कर्म भस्म हो सकते हैं' यह ज्ञान कहाँ से आता है? यह ज्ञान अनुभवों से आता है। जो परिस्थितियाँ आपने दूसरों के लिए बनाई हैं वही परिस्थितियाँ आपके पास वापस आती है, ताकि आप उससे ज्ञान प्राप्त कर सकें।
अगर आप किसी को नुकसान पहुंचाते हैं तो आप वही नुकसान उठाएंगे ताकि आप भी वह कष्ट महसूस करें जिससे आपको ज्ञान प्राप्त हो।
कर्म करना हमारा अपना चुनाव है लेकिन कर्म से जो परिणाम आता है उसका सामना हमें करना ही पड़ेगा। कर्म हमें ज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है। वह ज्ञान हमारे पापों को भस्म करने में मदद करता है। जब हमें पता चलता है कि मैंने जो दूसरों का नुकसान किया है वह मेरे नकारात्मक कर्म हैं जो अब मेरे पास ही वापस आ रहे हैं तो यह सीख ही ज्ञान है। हर कर्म का एक कर्म फल होता है और कर्म फल हमें ज्ञान प्राप्त करने और कर्मों को भस्म करने में मदद करता है।
प्रत्येक मनुष्य को ज्ञानी बनना है और प्रत्येक ज्ञानी अपने कर्मों को शुद्ध करता है। इसमें कई जन्म लग सकते हैं या ये तुरंत भी हो सकता है। यह सब आपके व्यक्तिगत चुनाव पर निर्भर करता है। यदि आप सीखने में रुचि नहीं रखते हैं तो कोई भी आपको बाध्य नहीं करेगा। कई जन्मों के बाद जब आप स्वयं ही ऊब जाओगे तो फिर से सीखने की ओर मुड़ जाओगे। हर चीज़ ‘स्व इच्छा' है।
आप पाप करें या पुण्य यह पूरी तरह से आपकी इच्छा है। आप बिना पाप किए रहें या पुण्य, यह भी आपका चुनाव है। परिस्थिति से सबक सीखना या नहीं यह भी पूरी तरह आपका ही चुनाव है। जब तक आप उससे सबक नहीं सीखते, उसी तरह के अनुभव आपके पास बार-बार आएंगे, भले ही इसमें कई युग ही क्यों ना लग जाएं। अगर कोई 10 साल तक MBBS करता है तो इसका मतलब है कि उसे सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए वह इतना लम्बे समय तक इसे खींच रहा है।
विशाखापट्नम में एक व्यक्ति मेरे पास शिकायत लेकर आया कि उसके बेटे को अभी 10 साल हो गए हैं और उसने अपना MBBS कोर्स पूरा नहीं किया। उसने मुझसे मदद मांगी ताकि लड़का अपना कोर्स पूरा कर सके। मैंने कहा नहीं ! मैं कैसे मदद कर सकता हूँ, हर किसी को अपना कोर्स खुद पूरा करना चाहिए अगर वह रुचि रखता है। मैं उसकी जीवन योजना में कैसे हस्तक्षेप कर सकता हूँ। अब ये बात अलग है कि बाद में उस लड़के ने अपनी पढ़ाई पूरी की और अब प्रैक्टिस भी कर रहा है।
मैं तमिलनाडु में एक महिला शिक्षिका से मिला । वह एक मांसाहारी परिवार से ताल्लुक रखती थी। परिवार के सदस्यों के साथ वह मांसाहारी भोजन भी करती थी। वह बहुत सी बीमारियों से पीड़ित थी। बाद में उन्हें ध्यान के बारे में पता चला और उन्होंने मांस खाना छोड़ दिया। उसने अपने पैर के दर्द को छोड़कर खुद को पूरी तरह से ठीक कर लिया। उसे पैर में तेज दर्द था। उसने खुद सवाल किया कि मैं इतना ध्यान कर रही हूँ, मैंने मांसाहारी खाना छोड़ दिया है तो यह पैर का दर्द ठीक क्यों नहीं होता ।
वह ध्यान में बैठी और अपना उत्तर प्राप्त किया। जिन दिनों में वह मांसाहारी भोजन करती थी, उसे मुर्गे के पांव की हड्डी खाने में बहुत आनंद आता था। जब ध्यान में उन्हें अपने पैर के दर्द का कारण पता चला तो उसने उन सभी मुर्गियों से उसे क्षमा करने के लिए कहा। उसने उनसे वादा किया कि वह अब और कोई मांस नहीं खाएगी।
वे पक्षी खुशी-खुशी उसे क्षमा करते हुए चले गए। इस पूरे प्रकरण से उस महिला को पता चला कि मांसाहार करने की वजह से उसे अब पैर में दर्द हो रहा है। उन्होंने अपने कर्मों पर खेद व्यक्त किया और सभी जीवों से क्षमा मांगी क्योंकि उसने सबक सीख लिया इसलिए उसका कर्म भस्म हो गया।
सिलीगुड़ी की एक मास्टर ने जमीन खरीदी। वह वहां एक पिरामिड बनाना चाहती थी और कुछ पौधे उगाना चाहती थी। किसी ने उस जमीन के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया। वह ध्यान में बैठी और इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मास्टर्स से प्रार्थना की। ध्यान में उन्होंने अपने पिछले एक जन्म का दृश्य देखा जहां उन्होंने एक बूढ़े दम्पति को उनके घर से बेघर कर उनके घर पर कब्जा कर लिया। यही कारण था कि इस जन्म में किसी ने उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया और वह अपनी ही जगह पर पिरामिड का निर्माण नहीं कर पा रही थी।
पिरामिड वैली में आने के बाद वह ध्यान में बैठी और सोचा कि पत्री जी ने मुझे पश्चिम बंगाल से कर्नाटक बुलाया है निश्चित रूप से कोई कारण हो सकता है। ध्यान में उन्हें जवाब मिला कि “यदि आप चाहते हैं कि आपका पिरामिड बने तो आप इस पिरामिड के निर्माण के लिए कुछ पैसे दान करें।" इसका मतलब है कि यहाँ पैसे देना कर्म का परिहार है। अब जब उसने यहां दान कर दिया है तो निश्चित रूप से वहाँ उसके अवरोध दूर हो जाएंगे। अच्छा करेंगे तो अच्छा मिलेगा।