श्वास और उससे आगे – आनापानसति और विपश्यना

श्वास और उससे आगे – आनापानसति और विपश्यना

श्वास का द्वार

शोर-शराबे, हलचल और मानसिक बिखराव से भरी दुनिया में, श्वास लेने की सरल क्रिया - शांति, स्पष्टता और ब्रह्मांडीय जगत का द्वार हो सकती है।

आनपानासती - सचेत श्वास का अभ्यास एक बीज है और विपश्यना - गहरी अंतर्दृष्टि की स्थिति है । यह वो फूल है, जो इस बीज से खिलता है ।


कई साधक इनमें भेद नहीं कर पाते हैं । आइए इसे स्पष्ट करें:

  • आनापानसाती अभ्यास है
  • विपश्यना इससे स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाली अवस्था है

आनापानसाती — अभ्यास

आनापानसाती का अर्थ है "श्वास पर ध्यान” ।

  • शांति से बैठें ।
  • अपनी आँखें बंद करें ।
  • आती और जाती श्वास के प्राकृतिक प्रवाह पर ध्यान रखें ।

कोई नियंत्रण नहीं । कोई जाप नहीं । कोई प्रयास नहीं ।


अभ्यास में क्या होता है?

  • श्वास सौम्य होने लगते है ।
  • विचार धीमे हो जाते हैं ।
  • होश नाक के छोर पर टिक जाता है ।
  • सूक्ष्म ऊर्जा की नाड़ियाँ शुद्ध होने लगतीं हैं ।
  • मन शांत झील बन जाता है — सत्य को दर्शाने वाला दर्पण।

आनापानसाती नींव है ।यह उच्च अनुभव के लिए चेतना को स्वस्थ, स्थिर, और तैयार करता है ।


विपश्यना – स्वभाव

विपश्यना का अर्थ है "स्पष्ट देखना" या "विशेष दृष्टि “ ।

यह एक अलग तरीका नहीं है; जब श्वास पर हमारा ध्यान बहुत गहरा हो जाता है, तब यह स्थिति उत्पन्न होती है। ।जब मन पूरी तरह शांत हो जाता है, तो अंतर्दृष्टि अपने आप प्रकट हो जाती है ।

विपश्यना में क्या होता है?

  • आप चीजों को जैसे हैं वैसे देखने लगते हैं।
  • समभाव विकसित होता है- आप विवेकपूर्ण प्रतिक्रिया देते हैं, आवेगात्मक प्रतिक्रिया नहीं ।
  • अवधारणाओं से परे, बुद्धि/ ज्ञान स्वाभाविक रूप से विकसित होती है ।
  • सूक्ष्म दृष्टि जागृत होती है: जीवन, ऊर्जा और सत्य की गहरी धारणा ।

विपश्यना घटित होता है। यह इच्छा से नहीं होता । यह स्थिरता का परिणाम है।


तुलना सारणी:

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प्रश्न- "मैंने विपश्यना का कोर्स किया है - यह कैसे अलग है?"

औपचारिक विपश्यना पाठ्यक्रम (जैसे गोयनका परंपरा) अक्सर आनापानसती से शुरू होते हैं, लेकिन जल्द ही संवेदनाओं और उनकी नश्वरता को जानने के लिए शरीर का अवलोकन शुरू कर देते हैं । लेकिन, आनापानसाती ध्यान में, केवल श्वास ही एकमात्र लंगर/ सहारा है । किसी स्कैनिंग या अतिरिक्त तकनीक की आवश्यकता नहीं है । उसमें विपश्यना जोड़ी नहीं जाती है बल्कि स्वाभाविक रूप से तब प्रकट होती है जब मौन परिपक्व होकर अंतर्दृष्टि में रूपांतरित हो जाता है ।

इसे ऐसे सोचें:

  • श्वास बीज है ।
  • विपश्यना फूल है ।

आप विपश्यना नहीं करते हैं । आप आनापानसाती का अभ्यास करते हैं, और अंतर्दृष्टि अपने आप विकसित हो जाती है


विपश्यना: अंतर्दृष्टि का उपहार यह केवल शरीर की संवेदनाओं को देखना नहीं है — यह दिव्य दृष्टि का प्रस्फुटन है। तीसरी आँख जागती है, अंतर्ज्ञान स्पष्ट होता है, और आप ऊर्जा व चेतना के सूक्ष्म स्तरों को महसूस करने लगते हैं।


अंतिम विचार - आनापानसति और विपश्यना दो अलग रास्ते नहीं — बल्कि एक ही यात्रा के दो चरण हैं। एक श्वास पर ध्यान है, दूसरा उस ध्यान से उत्पन्न होने वाली अंतर्दृष्टि।


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